अज्ञान-धर्म-करुणा-गरीबी ऐसे ही हैं जैसे चोली-दामन!
भारत सोका गोक्काई का एक कार्यक्रम लोदी रोड स्थित चिन्मय मिशन में था। इस संगठन के दो कार्यकर्ता श्री वीके कालड़ा और श्री खरे मेरे मित्र हैं। वे अक्सर मेरे आवास पर आकर चाँट करते हैं और बुद्घ की प्रतिमा के समक्ष ध्यान भी। इस कार्यक्रम में उन्होंने मुझे भी न्योता। पहले सोचा कि गाड़ी ले जाऊँ पर कल रात यूपी गेट से वसुंधरा तक के रास्ते में जिस तरह का जाम लगा हुआ था उसे अखबार में पढ़कर होश उड़ गए और मैने तय किया कि जाम में फँसने से बेहतर रहे कि मैं मेट्रो से चला जाऊँ और लौटने में वैशाली मेट्रो स्टेशन से चार किमी पैदल चलकर घर आ जाऊँ। क्योंकि जाते समय हमारे आटो वाले ड्राइवर विनोद सिंह ने बताया था कि कल इतना जाम था कि वैशाली मेट्रो से वसुंधरा तक आने में पूरे दो घंटे लग गए थे। यूं भी दिल्ली में कार ले जाने में एक सिरदर्द पार्किंग की है। आप ठीक तरह से पार्क कर गए और पता लगा कोई धनकुबेर आपकी गाड़ी के पीछे अपनी गाड़ी यूं लगा गया कि अब जब तक वह नहीं निकल जाए आप गाड़ी निकाल नहीं सकते इसलिए भी पैदल, मेट्रो व बस सेवा ज्यादा मुफीद प्रतीत होती है। वैशाली मेट्रो में आमतौर पर सीट मिल ही जाती है बशर्ते कि वरिष्ठ नागरिक वाली सीट पर कोई युवती या युवा छात्रा अपने पति या प्रेमी समेत नहीं बैठी हो। आमतौर पर आजकल मेट्रो की इन सीटों पर युवतियां कब्जा कर लेती हैं और अपने पुरुष साथियों को भी बिठा लेती है फिर वे दोनों बेशर्मी के साथ बैठे रहते हैं। इसके अलावा एक प्राणी और हैं जो इन सीटों पर काबिज रहते हैं वे हैं अधेड़ पुरुष जो देखने में तो ठीकठाक और चालीस के ऊपर दीखते हैं तथा वे आम स्थितियों में अपनी उम्र पैंतीस ही बताते हैं लेकिन मेट्रो में सीनियर सिटिजन्स के लिए आरक्षित सीट पर बैठने के लिए वे अपने साठ साला होने का सर्टीफिकेट अपने माथे पर लिखा लेते हैं। खैर मुझे सीट मिल गई और आश्चर्यजनक रूप से मंडी हाउस में चेंज करने के बाद बदरपुर जाने वाली मेट्रो में भी सीट मिल गई। अब मुझे उतरना था खान मार्केट पर जो एनाउंसमेंट हो रहा था वह सुनाई नहीं पड़ रहा था और जो डिजिटल मूकवाणी स्क्रीन पर उभर रही थी वह एक स्टेशन पीछे की सूचना देती थी। उसने खान मार्केट को केंद्रीय सचिवालय बताया और नेहरू स्टेडियम को खान मार्केट। जाहिर है मैं बजाय खान मार्केट उतरने के नेहरू स्टेडियम उतरा।
अब चिन्मय मिशन की लोकेशन के बारे में कन्फ्यूजन हो गया। चूंकि यह चिन्मय मिशन जाने का मेरा पहला ही चांस था इसलिए मैने सोचा कि चिन्मय मिशन वहीं होगा जहां एक आंध्राइट मंदिर है, साईं मंदिर है और जहां रामायण केंद्र है यानी कि भीष्म पितामह मार्ग। सो मैने पहले तो पत्रकारिता के शिरोमणि प्रात: स्मरणीय दयाल सिंह मजीठिया के नाम पर बने दयाल सिंह कालेज का राउंड लिया और पहुंचा साईं मंदिर के पास। वहां आंध्र मंदिर और साईं मंदिर के बीच में एक भगत अपनी होंडा सिटी गाड़ी लगाए पूरी-सब्जी और ब्रेड पकौड़ा बाट रहा था। अपने को हिंदू कहने वालों में करुणा का अथाह सागर लहराता ही रहता है। जहां कोई गरीब, वंचित या निर्धन अथवा लाचार विकलांग या उपेक्षित बीमार देखा नहीं कि ये श्रद्घालु हिंदू पहले तो खखार कर थूकेंगे फिर जेब से एक रुपया निकाल कर उसकी तरफ फेक देंगे या बचा हुआ अन्न अथवा उतरन उसको दे देंगे। सो वहां भी भीड़ जुटी थी और वे गरीब भी कोई कम नहीं होते वे भी करुणा के सागर में डूबते-उतराते रहते हैं तथा अपने दान में पाए भोजन में से वे कुछ अन्न बचा लेते हैं जो वे गाय माता अथवा कुत्तों या रिक्शे-ठेले वालों को दे देते हैं। कुछ तो इतने ढीठ होते हैं कि उन होंडा सिटी कार वाले के लड़के को ही पकड़ा दिया। मुझे प्रतीत हुआ कि हिंदू समाज में गरीबी बहुत अपरिहार्य है। जिस दिन गरीब गरीब न रहे हिंदू समाज रुई के फाहे की तरह उड़ जाएगा।
पूरे भीष्म पितामह मार्ग पर मुझे चिन्मय मिशन दिखा नहीं। एक ट्रैफिक कान्सटेबल से पूछा तो पहले तो वह मुझे देखता रहा फिर बोला- किसी के चौथे में जाना है? मैने कहा नहीं दरोगा जी एक फंक्शन है तो वह कुछ मंद पड़ा और पूछा- कार है? मैने कहा- नहीं पैदल हूं। तो उसने फटाक से जवाब दिया- फिर क्या है सीधे जाओ, बत्ती से उलटे हो जाना और अगली बत्ती से रांग साइड। बस आ गया चिन्मय मिशन। मैने उसके द्वारा बताए गए पंथ को पकड़ा और इंडिया हैबिटेट सेंटर पहुंच कर फिर कन्फ्यूजन हो गया तो मैने कालड़ा साहब को फोन किया तो वे बोले यहीं पास में है इस्लामिक कल्चरल सेंटर के बगल में। मैने कहा- पहले बता दिया होता तो कब का पहुंच जाता। खैर मैं एक जापानी द्वारा शुरू की गई इस बौद्घ मिशन में पहुंचा। वहां गत दिनों भोपाल जागरण लेकसिटी यूनीवर्सिटी की पहल पर हुए एक कार्यक्रम की फुटेज दिखाई जा रही थी जिसमें सोका गोक्काई इंटरनेशनल के अध्यक्ष डॉ दायसाकू इकेदा ने ही अपनी मातृभाषा जापानी में अपना भाषण दिया पर जागरण लेकसिटी यूनीवर्सिटी के कुलपति अनूप स्वरूप और कुलसचिव आर नेसामूर्ति अपनी नफीस अंग्रेजी में ही बोले और यह भी बताना नहीं भूले कि दैनिक जागरण भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाले हिंदी दैनिक है। एक ऐसे संस्थान में जुडऩे का क्या लाभ जो आप अपनी मातृभाषा बोलने में शर्म महसूस करते हैं। भारत सोका गोक्काई संगठन के अध्यक्ष अपनी हिंदीनुमा अंग्रेजी में बोले। मेरा इस पर कहना था कि यह संगठन आम लोगों में कैसे लोकप्रिय हो सकता है जब तक कि इसका प्रचार-प्रसार हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में नहीं होगा। यह तो वही करुणा का अथाह सागर में लोट रहे लोगों का मानसिक विलास ही हो गया।
लौटते वक्त कालड़ा साहब ने एक सिख नौजवान अमर जीत की कार में वापसी की व्यवस्था कर दी थी। वह सिख नौजवान तो मुझसे भी दो कदम आगे का क्रांतिकारी था। उसका कहना था कि सर मैं आज पहली मर्तबे सोका गोक्काई के कार्यक्रम में गया पर मुझे ऐसा लगा कि मानों वहां खाये-पिये-अघाये लोगों का कोई गेट टुगेदर हो। खूब सजी-धजी औरतें और उससे भी ज्यादा सजे-धजे पुरुषों को देखकर लगा ही नहीं कि हम किसी धार्मिक प्रोग्राम में आए हैं। मैने कहा- बच्चा जब तक अज्ञान रहेगा तब तक धर्म रहेगा और जब तक धर्म रहेगा तब तक करुणा और जब तक करुणा तब तक गरीबी!
भारत सोका गोक्काई का एक कार्यक्रम लोदी रोड स्थित चिन्मय मिशन में था। इस संगठन के दो कार्यकर्ता श्री वीके कालड़ा और श्री खरे मेरे मित्र हैं। वे अक्सर मेरे आवास पर आकर चाँट करते हैं और बुद्घ की प्रतिमा के समक्ष ध्यान भी। इस कार्यक्रम में उन्होंने मुझे भी न्योता। पहले सोचा कि गाड़ी ले जाऊँ पर कल रात यूपी गेट से वसुंधरा तक के रास्ते में जिस तरह का जाम लगा हुआ था उसे अखबार में पढ़कर होश उड़ गए और मैने तय किया कि जाम में फँसने से बेहतर रहे कि मैं मेट्रो से चला जाऊँ और लौटने में वैशाली मेट्रो स्टेशन से चार किमी पैदल चलकर घर आ जाऊँ। क्योंकि जाते समय हमारे आटो वाले ड्राइवर विनोद सिंह ने बताया था कि कल इतना जाम था कि वैशाली मेट्रो से वसुंधरा तक आने में पूरे दो घंटे लग गए थे। यूं भी दिल्ली में कार ले जाने में एक सिरदर्द पार्किंग की है। आप ठीक तरह से पार्क कर गए और पता लगा कोई धनकुबेर आपकी गाड़ी के पीछे अपनी गाड़ी यूं लगा गया कि अब जब तक वह नहीं निकल जाए आप गाड़ी निकाल नहीं सकते इसलिए भी पैदल, मेट्रो व बस सेवा ज्यादा मुफीद प्रतीत होती है। वैशाली मेट्रो में आमतौर पर सीट मिल ही जाती है बशर्ते कि वरिष्ठ नागरिक वाली सीट पर कोई युवती या युवा छात्रा अपने पति या प्रेमी समेत नहीं बैठी हो। आमतौर पर आजकल मेट्रो की इन सीटों पर युवतियां कब्जा कर लेती हैं और अपने पुरुष साथियों को भी बिठा लेती है फिर वे दोनों बेशर्मी के साथ बैठे रहते हैं। इसके अलावा एक प्राणी और हैं जो इन सीटों पर काबिज रहते हैं वे हैं अधेड़ पुरुष जो देखने में तो ठीकठाक और चालीस के ऊपर दीखते हैं तथा वे आम स्थितियों में अपनी उम्र पैंतीस ही बताते हैं लेकिन मेट्रो में सीनियर सिटिजन्स के लिए आरक्षित सीट पर बैठने के लिए वे अपने साठ साला होने का सर्टीफिकेट अपने माथे पर लिखा लेते हैं। खैर मुझे सीट मिल गई और आश्चर्यजनक रूप से मंडी हाउस में चेंज करने के बाद बदरपुर जाने वाली मेट्रो में भी सीट मिल गई। अब मुझे उतरना था खान मार्केट पर जो एनाउंसमेंट हो रहा था वह सुनाई नहीं पड़ रहा था और जो डिजिटल मूकवाणी स्क्रीन पर उभर रही थी वह एक स्टेशन पीछे की सूचना देती थी। उसने खान मार्केट को केंद्रीय सचिवालय बताया और नेहरू स्टेडियम को खान मार्केट। जाहिर है मैं बजाय खान मार्केट उतरने के नेहरू स्टेडियम उतरा।
अब चिन्मय मिशन की लोकेशन के बारे में कन्फ्यूजन हो गया। चूंकि यह चिन्मय मिशन जाने का मेरा पहला ही चांस था इसलिए मैने सोचा कि चिन्मय मिशन वहीं होगा जहां एक आंध्राइट मंदिर है, साईं मंदिर है और जहां रामायण केंद्र है यानी कि भीष्म पितामह मार्ग। सो मैने पहले तो पत्रकारिता के शिरोमणि प्रात: स्मरणीय दयाल सिंह मजीठिया के नाम पर बने दयाल सिंह कालेज का राउंड लिया और पहुंचा साईं मंदिर के पास। वहां आंध्र मंदिर और साईं मंदिर के बीच में एक भगत अपनी होंडा सिटी गाड़ी लगाए पूरी-सब्जी और ब्रेड पकौड़ा बाट रहा था। अपने को हिंदू कहने वालों में करुणा का अथाह सागर लहराता ही रहता है। जहां कोई गरीब, वंचित या निर्धन अथवा लाचार विकलांग या उपेक्षित बीमार देखा नहीं कि ये श्रद्घालु हिंदू पहले तो खखार कर थूकेंगे फिर जेब से एक रुपया निकाल कर उसकी तरफ फेक देंगे या बचा हुआ अन्न अथवा उतरन उसको दे देंगे। सो वहां भी भीड़ जुटी थी और वे गरीब भी कोई कम नहीं होते वे भी करुणा के सागर में डूबते-उतराते रहते हैं तथा अपने दान में पाए भोजन में से वे कुछ अन्न बचा लेते हैं जो वे गाय माता अथवा कुत्तों या रिक्शे-ठेले वालों को दे देते हैं। कुछ तो इतने ढीठ होते हैं कि उन होंडा सिटी कार वाले के लड़के को ही पकड़ा दिया। मुझे प्रतीत हुआ कि हिंदू समाज में गरीबी बहुत अपरिहार्य है। जिस दिन गरीब गरीब न रहे हिंदू समाज रुई के फाहे की तरह उड़ जाएगा।
पूरे भीष्म पितामह मार्ग पर मुझे चिन्मय मिशन दिखा नहीं। एक ट्रैफिक कान्सटेबल से पूछा तो पहले तो वह मुझे देखता रहा फिर बोला- किसी के चौथे में जाना है? मैने कहा नहीं दरोगा जी एक फंक्शन है तो वह कुछ मंद पड़ा और पूछा- कार है? मैने कहा- नहीं पैदल हूं। तो उसने फटाक से जवाब दिया- फिर क्या है सीधे जाओ, बत्ती से उलटे हो जाना और अगली बत्ती से रांग साइड। बस आ गया चिन्मय मिशन। मैने उसके द्वारा बताए गए पंथ को पकड़ा और इंडिया हैबिटेट सेंटर पहुंच कर फिर कन्फ्यूजन हो गया तो मैने कालड़ा साहब को फोन किया तो वे बोले यहीं पास में है इस्लामिक कल्चरल सेंटर के बगल में। मैने कहा- पहले बता दिया होता तो कब का पहुंच जाता। खैर मैं एक जापानी द्वारा शुरू की गई इस बौद्घ मिशन में पहुंचा। वहां गत दिनों भोपाल जागरण लेकसिटी यूनीवर्सिटी की पहल पर हुए एक कार्यक्रम की फुटेज दिखाई जा रही थी जिसमें सोका गोक्काई इंटरनेशनल के अध्यक्ष डॉ दायसाकू इकेदा ने ही अपनी मातृभाषा जापानी में अपना भाषण दिया पर जागरण लेकसिटी यूनीवर्सिटी के कुलपति अनूप स्वरूप और कुलसचिव आर नेसामूर्ति अपनी नफीस अंग्रेजी में ही बोले और यह भी बताना नहीं भूले कि दैनिक जागरण भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाले हिंदी दैनिक है। एक ऐसे संस्थान में जुडऩे का क्या लाभ जो आप अपनी मातृभाषा बोलने में शर्म महसूस करते हैं। भारत सोका गोक्काई संगठन के अध्यक्ष अपनी हिंदीनुमा अंग्रेजी में बोले। मेरा इस पर कहना था कि यह संगठन आम लोगों में कैसे लोकप्रिय हो सकता है जब तक कि इसका प्रचार-प्रसार हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में नहीं होगा। यह तो वही करुणा का अथाह सागर में लोट रहे लोगों का मानसिक विलास ही हो गया।
लौटते वक्त कालड़ा साहब ने एक सिख नौजवान अमर जीत की कार में वापसी की व्यवस्था कर दी थी। वह सिख नौजवान तो मुझसे भी दो कदम आगे का क्रांतिकारी था। उसका कहना था कि सर मैं आज पहली मर्तबे सोका गोक्काई के कार्यक्रम में गया पर मुझे ऐसा लगा कि मानों वहां खाये-पिये-अघाये लोगों का कोई गेट टुगेदर हो। खूब सजी-धजी औरतें और उससे भी ज्यादा सजे-धजे पुरुषों को देखकर लगा ही नहीं कि हम किसी धार्मिक प्रोग्राम में आए हैं। मैने कहा- बच्चा जब तक अज्ञान रहेगा तब तक धर्म रहेगा और जब तक धर्म रहेगा तब तक करुणा और जब तक करुणा तब तक गरीबी!
Casinos Near Me (MapYRO) | 2021 All You Need to Know
जवाब देंहटाएंCasinos Near 포천 출장샵 Me in 2021 — Closest Casinos with MapYRO Near Me in 2021 포천 출장안마 There are 1,500 광주광역 출장샵 gambling 광주 출장마사지 establishments nearby to you! · 양주 출장마사지 7 Casino Near Me