एक ङ्क्षकदवंती थे छविराम यादव उर्फ नेताजी
मध्यम सा औसत कद था और नैन नक्श तीखे, गंदुमा रंग मगर शरीर कुछ भारी। सफेद कुरता और धोती पहने उस व्यक्ति को मैं देखता ही रह गया। समझ में ही नहीं आया कि पुलिस की क्राइम डायरी में जिस छविराम यादव उर्फ नेता जी उर्फ एटा, मैनपुरी, फरुखाबाद के नामी डकैत की खौफनाक कहानियां हम पढ़ते रहे हैं वह तो किसी भी नजर से क्रूर या गुंडा नहीं लग रहा। बैठो पंडित जी चारपाई के अदवाइन की तरफ सरकते हुए मुझे सिरहाने की तरफ बैठने को नेताजी ने कहा। मैं उस छवि से न तो आतंकित हो रहा था न मेरे अंदर उसे लेकर कोई खौफ पल रहा था। शायद इसकी वजह आसपास कोई बंदूकधारी या हिंदी फिल्मों के गब्बर ङ्क्षसह टाइप के चेहरे नहीं दिख रहे थे। मैने पहला ही सवाल ठोका नेता जी आप डकैत कैसे बने? उनके चेहरे का मिजाज कुछ बिगड़ा फिर वे शांत भाव से बोले- पंडित जी हम डकैत नाहीं बागी हैं। और बागी कैसे बनत हैं आपको मालुमै होगा। ना मालुम होय तौ एटा और मैनपुरी के कप्तानन से पूछ लिहौ। उनकी डायरी मां दर्ज हुइहै।
साल १९८१ की फरवरी के आखीर के दिन थे। एटा जिले में अलीगंज के जंंगलों में मशहूर दस्यु सम्राट छविराम से मेरी मुलाकात एक छोटे से गांव में हुई थी। मुलाकात के पहले लटूरी ङ्क्षसह यादव और प्रदेश के एक मंत्री से मैने पैरवी कराई थी। मैने छविराम के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। बड़ी इच्छा थी उनसे मिलने की। एटा के एसएसपी विक्रम ङ्क्षसह पूरा जोर लगाए थे डाकुओं को नेस्तनाबूद करने के लिए इसलिए डकैतों ने अपनी सुरक्षा बढ़ा दी थी और वे जंगलों के बीच के गांवों में ही रहते थे। चूंकि गांवों के अंदर डकैतों को खोजना आसान नहंी था इसलिए पुलिस चाहकर भी हथियार डाले बैठी थी। उधर मुख्यमंत्री वीपी ङ्क्षसह पर उनके सजातीय बंधुओं का दबाव पड़ रहा था कि ईं सारे नए डकैतन का पकड़ौ राजा साहब। पर राजा साहब गांवों के नए समाज शास्त्र को पकड़ नहीं पा रहे थे और जब तक समझते उनकी सरकार चली गई।
दस्यु सम्राट छविराम यानी कि नेता जी ने मुझसे करीब दो घंटे तक बातचीत की। इस बीच एक बड़ा गिलास दूध आया और खाना भी लगाया गया। शुद्ध शाकाहारी खाना। उड़द की दाल आलू टमाटर की तरकारी, खूब घी से तर रोटियां और चावल। नेताजी ने बताया कि खाना पंडित ने ही बनाया है। मैने कहा मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता तो नेता जी बोले मुझे पड़ता है बबुआ जी और खालिस आपके खातिर ही चावल बनवाए गए काहे कि आप पूरब के हो।
बाद में पुलिस ने एक इनकाउंटर में नेता जी को मार गिराया तब मुझे लगा कि चाहे जिस जाति का बागी हो जब वह लोकप्रिय हो जाता है तो राजनेता पुलिस पर दबाव डालकर उसे एनकाउंंटर करवा ही देते हैं। दस्यु सम्राट मानङ्क्षसह, लुक्का और १९८२ में छविराम यादव उर्फ नेता जी को पुलिस ने मार दिया। पर आज उन्हीं नेताजी का बेटा यूपी पुलिस में अधिकारी हैं।
मध्यम सा औसत कद था और नैन नक्श तीखे, गंदुमा रंग मगर शरीर कुछ भारी। सफेद कुरता और धोती पहने उस व्यक्ति को मैं देखता ही रह गया। समझ में ही नहीं आया कि पुलिस की क्राइम डायरी में जिस छविराम यादव उर्फ नेता जी उर्फ एटा, मैनपुरी, फरुखाबाद के नामी डकैत की खौफनाक कहानियां हम पढ़ते रहे हैं वह तो किसी भी नजर से क्रूर या गुंडा नहीं लग रहा। बैठो पंडित जी चारपाई के अदवाइन की तरफ सरकते हुए मुझे सिरहाने की तरफ बैठने को नेताजी ने कहा। मैं उस छवि से न तो आतंकित हो रहा था न मेरे अंदर उसे लेकर कोई खौफ पल रहा था। शायद इसकी वजह आसपास कोई बंदूकधारी या हिंदी फिल्मों के गब्बर ङ्क्षसह टाइप के चेहरे नहीं दिख रहे थे। मैने पहला ही सवाल ठोका नेता जी आप डकैत कैसे बने? उनके चेहरे का मिजाज कुछ बिगड़ा फिर वे शांत भाव से बोले- पंडित जी हम डकैत नाहीं बागी हैं। और बागी कैसे बनत हैं आपको मालुमै होगा। ना मालुम होय तौ एटा और मैनपुरी के कप्तानन से पूछ लिहौ। उनकी डायरी मां दर्ज हुइहै।
साल १९८१ की फरवरी के आखीर के दिन थे। एटा जिले में अलीगंज के जंंगलों में मशहूर दस्यु सम्राट छविराम से मेरी मुलाकात एक छोटे से गांव में हुई थी। मुलाकात के पहले लटूरी ङ्क्षसह यादव और प्रदेश के एक मंत्री से मैने पैरवी कराई थी। मैने छविराम के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। बड़ी इच्छा थी उनसे मिलने की। एटा के एसएसपी विक्रम ङ्क्षसह पूरा जोर लगाए थे डाकुओं को नेस्तनाबूद करने के लिए इसलिए डकैतों ने अपनी सुरक्षा बढ़ा दी थी और वे जंगलों के बीच के गांवों में ही रहते थे। चूंकि गांवों के अंदर डकैतों को खोजना आसान नहंी था इसलिए पुलिस चाहकर भी हथियार डाले बैठी थी। उधर मुख्यमंत्री वीपी ङ्क्षसह पर उनके सजातीय बंधुओं का दबाव पड़ रहा था कि ईं सारे नए डकैतन का पकड़ौ राजा साहब। पर राजा साहब गांवों के नए समाज शास्त्र को पकड़ नहीं पा रहे थे और जब तक समझते उनकी सरकार चली गई।
दस्यु सम्राट छविराम यानी कि नेता जी ने मुझसे करीब दो घंटे तक बातचीत की। इस बीच एक बड़ा गिलास दूध आया और खाना भी लगाया गया। शुद्ध शाकाहारी खाना। उड़द की दाल आलू टमाटर की तरकारी, खूब घी से तर रोटियां और चावल। नेताजी ने बताया कि खाना पंडित ने ही बनाया है। मैने कहा मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता तो नेता जी बोले मुझे पड़ता है बबुआ जी और खालिस आपके खातिर ही चावल बनवाए गए काहे कि आप पूरब के हो।
बाद में पुलिस ने एक इनकाउंटर में नेता जी को मार गिराया तब मुझे लगा कि चाहे जिस जाति का बागी हो जब वह लोकप्रिय हो जाता है तो राजनेता पुलिस पर दबाव डालकर उसे एनकाउंंटर करवा ही देते हैं। दस्यु सम्राट मानङ्क्षसह, लुक्का और १९८२ में छविराम यादव उर्फ नेता जी को पुलिस ने मार दिया। पर आज उन्हीं नेताजी का बेटा यूपी पुलिस में अधिकारी हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें