रविवार, 31 मार्च 2013


A PROTRAIT OF PRABHA KHAITAN

प्रभा खेतान ने गढ़ी थीं अपनी मान्यताएं
                शंभूनाथ शुक्ल
मैं जब जनसत्ता का स्थानीय संपादक होकर कोलकाता पहुंचा तो मुझे वहां प्रभाजी से मिलने की बड़ी तमन्ना थी। प्रभाजी यानी प्रभा खेतान। मारवाड़ी समाज में प्रभाजी की हैसियत पैसे के लिहाज से तो कोई बहुत ऊंची नहीं थी पर उन्होंने कलक त्ता के परंपरागत मारवाड़ी समाज केपुरुषवादी सोच को हिलाकर रख दिया था। एक ऐसी महिला से मिलने की प्रबल इच्छा होनी स्वाभाविक है। प्रभाजी से मिलकर उन तमाम मारवाडिय़ों के संपर्क में आ सका जिन्होंने इस समाज केभीतर रहकर उसमें क्रांतिकारी परिवर्तन किए। संदीप भूतोडिय़ा, बसंत रूंगटा आदि। प्रभा खेतान एक साहित्यकार के रूप में भी कोई बहुत पढ़ी जाने वाली हस्ती नहीं थीं लेकिन साहित्यकार उनके  अर्दब में जरूर रहते थे। इसकी एक वजह तो यह थी कई साहित्यिक पत्रिकाओं को वह नियमित सहायता करती रहती थीं। कई बड़े लेखकों की साहित्यिक पुस्तकें  खरीद कर वह बंटवाती भी थीं। वे दर्शन की विद्वान थीं। सैमुअल हटिंग्टन की मशहूर पुस्तक क्लैश आफ सिविलीजेशन पर उनकी व्याख्या अद्भुत थी। वे एक सफल उद्यमी भी थीं। लेदर एक्सपोर्ट के अपने व्यापार में प्रभाजी मारवाड़ी समाज के अच्छे खासे उद्योगपतियों को पीछे छोड़ चुकी थीं। पर उन्हें इन सब के ऊपर जो चीज बैठाती थी वह थी मारवाड़ी समाज के अंतर्विरोधों से निरंतर उनका संघर्ष।
अपने समाज से बाहर निकलकर उससे लडऩा आसान है पर अपने समाज के अंदर रहकर उसकी विद्रूपताओं से लडऩा उतना ही मुश्किल। प्रभाजी ने मारवाड़ी समाज के  अंदर रह कर यह लड़ाई लड़ी। अन्या से अनन्या उनकी आत्मकथा है। इसमें अपने समाज और उससे भिडऩे की अपनी इच्छा के हर पहलू का विश्लेषण उन्होंने बड़ी बेबाकी से किया है। मारवाड़ी समाज में स्त्री की स्थिति दादी सती की उस कथा से पता चलती है जहां हर बेटी को उसकी मां पालने से ही सिखाना ही शुरू करती है कि बेटी तू अपने पति की हर स्थिति में सेवा करना और उसकेप्रति जीवन भर एकनिष्ठ बने रहना, भले तेरा पति कैसा भी हो। किसी पराए मर्द की तरफ आंख उठाकर देखना भी मारवाड़ी समाज में स्त्री के  च्युत हो जाने का प्रमाण माना जाता है। ऐसे समाज में प्रभाजी ने अपनी स्त्री अस्मिता को प्रमुखता दी। उन्होंने स्त्री के लिए वर्जित माने जाने वाले हर क्षेत्र में प्रवेश किया चाहे वह चमड़े का कारोबार हो या लेखन अथवा बगैर शादी कि ए किसी पुरुष केसाथ रहना और उससे पत्नित्व का हक मांगना, ये सारी बातें स्त्री के परंपरावादी स्वरूप से मेल नहीं खातीं। इसलिए मारवाड़ी समाज में वे अलग-थलग पड़ गईं। कोलकाता का मारवाड़ी समाज वहां अल्पसंख्यक मानसिकता से ग्रस्त है। बड़ा बाजार से आगे बस अलीपुर पहुंचना ही उसका मकसद रहता है। वहां के बंगाली समाज केसाथ कदम से कदम मिलाकर बढऩे की वह सोच भी नहीं पाता। हर अल्पसंख्यक समाज की तरह वहां का मारवाड़ी समाज में भी नैतिकता का अर्थ घर की बेटियों को घर की चारदीवारी नहीं लांघने देना है। पर प्रभा खेतान ने इस चारदीवारी को लांघने की जुर्रत की। मझोले मारवाड़ी समाज की बेटी कोलकाता के प्रतिष्ठिïत प्रेसीडेंसी कालेज में पढऩे की आज भी सोच नहीं सकती लेकिन प्रभा खेतान ने साठ केदशक में दर्शन शास्त्र से एमए वहीं से किया। उनके पहले उस कालेज में सिर्फ एक और मारवाड़ी महिला ने पढ़ाई की थी वे थीं निर्मला जालान, जो कि रिजर्ब बैंक के पूर्व गवर्नर विमल जालान की बहन थीं। लेकिन निर्मला जालान जहां संपन्न मारवाड़ी समाज से आती थीं वहींं प्रभाजी उनकी तुलना में साधारण हैसियत के परिवार की बेटी थीं।

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