गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

tiger conservation


घुमक्कड़ी और टूरिज्म
शंभूनाथ शुक्ल
घुमक्कड़ी और टूरिज्म में फर्क है। घुमक्कड़ी एक लगन है, एक जुनून और इसके लिए पैसों की जरूरत नहीं होती। लेकिन टूरिजम एक व्यवसाय है। एक घुमक्कड़ दुनिया घूमता है कुछ नया जानने के लिए और कुछ नया समझने के लिए। वह शांति पूर्वक, धैर्य के साथ कहीं भी किसी भी जगह रह लेगा और बसर कर लेगा। लेकिन एक पर्यटक बिना शोर शराबे के नहीं रह सकता। वह जहां जाएगा सबको बता देगा कि वह कुछ खास है। इस इलाके को उपकृत करने के मकसद से आया है। इसीलिए आप पाएंगे कि पर्यटन ने सारे संसार का नक्शा बिगाड़ दिया है। उसे भांति-भांति की शराब चाहिए, औरतें चाहिए और हर तरह के व्यंजन। बैंकाक हो, मकाऊ हो, मनीला हो या दुबई आज इसीलिए बदनाम हैं। लेकिन वहां की सरकारें इसे अच्छा समझती हैं।
यही हाल अपने देश में होता जा रहा है। पर राज्य सरकारें पैसों के लालच में पर्यटकों को लुभाने के लिए वह सब करती हैं जिनसे वहां की जलवायु प्रभावित होती है और संस्कृति का ढंाचा बिगड़ता है। आज अगर जगह-जगह परदेसियों को बाहर करने की मांग उठ रही है उसकेपीछे यही मानसिकता है। पर्यटक दक्षिण भारत में जाकर मटर पनीर अथवा दाल मखानी या तंदूरी चिकन की मांग करेगा और उत्तर में आकर डोसा, वड़ा एवं इडली मांगेगा। उसे  समझ में नहींं आता कि  अपनी इस तरह की हरकत से वो बायो डायवर्सिटी को चौपट कर रहा है।
हमारे देश में बाघों को बचाने के लिए टाइगर प्रोजेक्ट की स्थापना उस समय की प्रधानमंत्री   इंदिरा गांधी ने १९७१ में कपूरथला के महाराजा ब्रजेंद्र सिंह की अगुआई में की थी। उसे राज्य सरकारों ने पैसों के लालच में चौपट कर डाला है। जिम कार्बेट जैसे अभयारण्य इन्हीं पर्यटकों की बेशुमार आवाजाही से खत्म होता जा रहा है। यदि जिम कार्बेट को बचाना है तो केंद्र सरकार इसे अपने हाथों में ले लेे और इसे अफसरों की बीवियों और धनाढ्य पर्यटकों केलिए सैरगाह न बनाए। यहां वही आ सकें जिनकी वाइल्ड लाइफ में दिलचस्पी हो वर्ना उन्हें गेट से ही बाहर कर दिया जाए। इसके लिए जिम कार्बेट के हर प्रवेश द्वार पर सुशिक्षित और प्रशिक्षित लोग रहें जो पर्यटकों को अंदर प्रवेश की अनुमति तभी दें जब वे खुद उनके संयम से संतुष्ट हो जाएं। दुख है कि उत्तराखंड की सरकार जिम कार्बेट का व्यवसायीकरण करे डाल रही है। इस पर अंकुश बहुत जरूरी है।
अभी पिछली २५ दिसंबर को मेरा सपरिवार जिम कार्बेट जाने का कार्यक्रम बना। जिम कार्बेट के बारे में पहले मैने अपने परिवार को पूरी जानकारी दी। हिमालय की तराई में शिवालिक पहाडिय़ों के आसपास का सारा जंगल रामगंगा के दोनों तरफ लंबी-लंबी घास के जंगलों से घिरा है। इन्हीं घास के जंगलों में बाघ रहता है। सूर्य की रोशनी उसके शरीर में लंबी घास के बीच में से आती है। इसीलिए बाघ के शरीर में चारों तरफ लाइनें होती हैं। जबकि तेंदुआ सागौन के पेड़ों के ऊपर रहता है इसीलिए पत्तों के बीच से छनकर आई रोशनी उसे मिलती है। उसके बदन पर चित्तियां होती हैं। जंगल के कुछ कायदे-कानून होते हैं उन्हें हमें फालो करना चाहिए। किसी भी अभयारण्य में हथियार लेकर अथवा कोई मादक पदार्थ लेकर नहीं जा सकते। अभयारण्य का मतलब ही है कि हम वाइल्ड लाइफ के बीच जा रहे हैं। यह उनका घर है इसलिए हमें उनकी सुविधा असुविधा का ख्याल रखना चाहिए। हम वहां जंगल में गेस्ट हाउस के बाहर कुछ खाएं पिएंगे नहीं। कोई पोलीथीन नहीं इस्तेमाल करेेंगे और कोई चीज फेकेंगे नहीं न ही हम वहां शोर शराबा अथवा मोबाइल इस्तेमाल करेंगे।
हम तो खैर उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के अमानगढ़ के फारेस्ट रेस्ट हाउस में रुके। अमानगढ़ को अब एटीआर यानी अमानगढ़ टाइगर रिजर्व का दरजा मिल गया है। हम तड़के वहां से जंगल की ट्रैकिंग को निकले। मेरे परिवार ने सारे कानून कायदों का पालन किया। लेकिन मैने पाया कि बगल के जिम कार्बेट अभयारण्य में गाडिय़ों की आवाजाही, पर्यटकों का धूम धड़ाका इतना अधिक था कि वहां कोई भी जानवर रह ही नहंी सकता। पर उत्तराखंड की सरकार ने आज तक किसी पर्यटक को नहीं रोका।                              
यहीं हाल लगभग हर रिजर्ब फारेस्ट या अभयारण्य का है। उन्हें बस धनीमानी लोगों के उपभोग का अड्डा बना दिया गया है। यहां तक कि शिवपुरी के माधव राष्ट्रीय उद्यान में तो अब एक भी जंगली जानवर नहीं बचा है। वहां की झील के मगरों का शिकार होता है। राजाजी नेशनल पार्क को हाथी तस्करों और सागौन माफियाओं ने खत्म कर दिया है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें