गुरुवार, 10 मार्च 2016

सोमनाथ का श्राप उनके अंतर से फूटा

सोमनाथ का श्राप उनके अंतर से फूटा
शंभूनाथ शुक्ल
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमा शास्वतीसमा
यत्क्रौंचमिथुनादेकंवधी काममोहितम्
महर्षि वाल्मीकि ने बहेलिए को शाप देते हुए कहा था कि हे बहेलिए! तुम युगों युगों तक प्रतिष्ठा को नहीं पा पाओगे क्योंकि तुमने कामातुर क्रौंच जोड़े को उस वक्त मारा जब वे मैथुनरत थे। महर्षि वाल्मीकि अपनी गहन तपश्चर्या से जीवन के राग विराग से दूर हो गए थे लेकिन बहेलिएका यह अत्याचार देखकर उनकेअंदर की स्वाभाविक पीड़ा फूट पड़ी और उन्होंने बधिक को शाप दे दिया। मनुष्य की भावनाएं पीड़ा से ही फूटती हैं। भले वे शाप के रूप में हों अथवा वरदान के रूप में। कविता का तो सृजन ही पीड़ा से होता है। 
तभी तो अपने दादा सोमनाथ चटर्जी ने चौदहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र में सदस्यों को शाप दे डाला कि तुम सब हार जाओगे। दादा के इस क्रोध से सदन में सन्नाटा फैल गया। शून्य प्रहर में अपनी-अपनी बात कहने को आतुर संासदों ने इस कदर हंगामा बरपा कर दिया था कि दादा आपा खो बैठे और सांसदों को हारने का शाप दे डाला। दादा का यह शाप उनकेमुंह से एक रिदम के रूप में फूटा- यू आल आर डिफीटेड यानी हार जाओ तुम सब!
दादा सोमनाथ चटर्जी तो कम्युनिस्ट हैं। यकीनन वे यह बात तो मानेंगे नहीं लेकिन हमारे देश की लोक परंपरा कहती है कि ब्राह्मïण का श्राप निष्फल नहीं जाता है। संयोग यह भी है कि दादा ब्राह्मïण भी हैं। लोकसभा के अध्यक्ष होने के नाते वे पूरी लोकसभा के सभी सदस्यों के पुरोधा हैं। इसलिए उनका दरजा एक स्कूल के प्राचार्य जैसा ही है। प्राचार्य अपने विद्यार्थियों से चाहे जितना आजिज हो आम तौर पर उनकी चलाचली की बेला में ऐसा श्राप तो नहीं देता। जाहिर है दादा ने यह श्राप तभी दिया होगा जब वे सांसदों के आचरण से इतना दुखी हुए होंगे कि श्राप उनके मुंह से यकायक फूट पड़ा। दादा के शाप के बाद से लोकसभा के सदस्य ऐसे घबड़ाए कि बसपा के सांसद राजेश वर्मा ने भयाक्रांत होते हुए कहा कि दादा का गुस्सा जायज है। आखिर कब तक वे सांसदों का तमाशा देखते रहते। 
यूं सोमनाथ दादा आजकल अपनी पार्टी की वजह से भी दुखी हैं। उनकी पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर रखा है। दादा पुराने खांटी साम्यवादी हैं। इस तथ्य के बावजूद कि उनके पिता पश्चिम बंगाल से हिंदू महासभा से सांसद रहे हैं और दादा के सबसे अच्छे मित्र अटलबिहारी बाजपेयी हैं। लेकिन दादा के कम्युनिस्ट होने पर किसी को शुबहा नहीं होगा। इसके बावजूद माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी केनए निजाम ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। सोमनाथ दादा कामरेड ज्योति वसु खेमे के हैं और माकपा के नए महासचिव प्रकाश करात माकपा में पुरानी पीढ़ी के लोगोंं को पसंद नहींं करते हैं। प्रकाश अभी तक यह भी फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि वे केरल में विजयन और अच्युतानंदन की रार को कैसे सुलझाएं। वे अब्दुल्ला कुट्टी की धार्मिक कट्टरता के बारे में भी कोई निर्णय नहीं ले पाए। पोलित ब्यूरो के युवातुर्कों को पुरानी पीढ़ी के माकपाई फूटी आंख भी नहींं सुहाते। लेकिन नई पीढ़ी के माकपाई अमेरिका को गरियाते तो खूब हैं लेकिन जीवन शैली के मामले में वे अमेरिका के कायल हैं।
गुस्से और दुख में श्राप दे देने की परंपरा हमारे मिथ में अनगिनत हैं। दुर्वासा ऋषि के श्राप तो प्रसिद्घ हैं ही। सभी उनके श्राप से घबड़ाते थे। पांडवों को उनके श्राप से बचाने के लिए द्रोपदी ने कृष्ण की मदद ली थी लेकिन कृष्ण अपने ही वंश को उनकेश्राप से नहीं बचा पाए और द्वारिका का सारा यदुवंश दुर्वासा के श्राप से नष्ट हो गया था। शाप महिलाएं भी देती थीं। शची के श्राप से अर्जुन को वृहन्नला बनना पड़ा था और देवयानी के श्राप से वृहस्पति पुत्र कच को अमरत्व की विद्या विस्मृत हो गई थी। देवयानी के श्राप से ही ययाति अपना पुंसत्व खो बैठे थे। दादा सोमनाथ चटर्जी का श्राप कितना असर दिखाएगा यह तो भविष्य में पता चलेगा। लेकिन अगर दादा का श्राप सच हो गया तो हमारी पंद्रहवीं लोकसभा में वे लोग जीत कर आएंगे जो परदे पर गांधीगिरी करते हैं। या सट्टेबाजों से पैसा लेकर क्रिकेट खेलते हैं। ये जितने लोग शून्य प्रहर में हंगामा कर रहे थे इनमें से कोई भी ऐसा नहीं था जो संसद के सत्र के दौरान अनुपस्थित रहा हो या जिसे अपने क्षेत्र से कोई लगाव न हो। परेशानी तो इस बात की है कि संसद के सत्र चलते नहीं और अगर चलते भी हैं तो उनमें पिछड़े इलाकों की आवाज तक नहीं उठ पाती। सत्ता पक्ष और विपक्ष के वे सांसद जो कभी कभार ही सदन में आते हैं। उनके हारने की कामना करना तो समझ में आता है लेकिन ध्यान रखने की बात यह है कि १९ फरवरी को जो सांसद हंगामा कर रहे थे वे अपने इलाकों की वाजिब समस्याओं की तरफ सदन का ध्यान खींचना चाहते थे। 
हमारे सदन में गोविंदा, धर्मेंद्र और नवजोत सिंह सिद्घू जैसे सांसद भी हैं जिनका रिकार्ड मंगाया जाए कि वे कितने दिन सदन में आए। तब पता चलेगा कि संसद के सत्रों की अनदेखी कौन कर रहा है? लॉफ्टर चैलेंज जैसे टीवी शो में फूहड़ चुटकुलों पर ठहाका मारने वाले सिद्घू ने कब किस वाजिब समस्या की तरफ संसद का ध्यानाकर्षण किया। तब क्या हम ऐसे शांतिप्रिय सांसदों से सदन की गरिमा को बहाल कराएंगे जिन्हें पार्टियां हंसी ठठ्ठे के लिए लोकसभा चुनाव लड़ाने को आतुर हैं। शोर शराबा करने वाले सांसद भले ही सदन के कामकाज में खलल डाल रहे हों लेकिन वे अपने क्षेत्रों की समस्याओं को संसद का ध्यान खींचने की मंशा तो रखते हैं।

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