गुरुवार, 24 मार्च 2016

उईं अउर आँय हम अउर आँय!



उईं अउर आँय हम अउर आँय!
शंभूनाथ शुक्ल
राजनीतिक दलों के नेता गण समझाया करते हैं हम गरीबों के साथ हैं। यह सरासर गलत बात है। चाहे वह बीजेपी हो या कम्युनिस्ट अथवा कांग्रेसी सब के सब पूंजीपतियों के हाथों दलालों की तरह खेलते हैं। सारा मीडिया और हर स्तंभ भी यही आचरण करता है। अगर पैसा न हो तो कोई भी संस्था या पोलेटिकल पार्टी आपका साथ देने से रही। भले वह सपा हो या बसपा अथवा जदयू। इसीलिए गरीब और गरीबी को पीछे कर अब हर राजनीतिक दल कभी मंडल के नाम पर कभी कमंडल के नाम पर अपने-अपने हितों की पूर्ति कर रहा है। जिस पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट 34 साल सत्ता में रहे वहां पर दलित आज भी सबसे उपेक्षित हैं। जहां पिछड़ों का राज रहा उस तमिलनाडु, कर्नाटक व केरल तथा आंध्र में दलित जिंदा जला दिए जाते हैं। और बिहार व यूपी में जहां सपा, बसपा व जदयू रही वहां दलित व गरीब आज भी बस वोट भर है। सारे के सारे नेता अरबों में खेल रहे हैं और जिस कीमत पर खेल रहे है उस दलित, पिछड़े, वंचित व गरीब वर्ग को कुछ नहीं मिला। नरेंद्र शर्मा की एक कविता है-
इस दुनिया में दो दुनिया हैं जिनके नाम गरीब-अमीर।
पर सोने के महल बने हैं, मिट्टी का ही सीना चीर॥
दीन भी उनका, दुनिया उनकी, उनके तोप और तलवार।
उनके अफसर और गवर्नर, उनके ही साहब सरकार॥
मंदिर उनके, मस्जिद उनके, गिरजे उनकी बाजू में।
पैगम्बर, अवतार, मसीहा जैसे बाट तराजू में॥
अब देखिए नरेंद्र शर्मा से बहुत पहले पैदा हुए और कम्युनिस्ट पार्टी के जन्म के भी काफी पहले अवधी के कवि बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस ने भी यही बात कही थी कि उई अउर आँय हम अउर आँय, यानी वे और हैं तथा हम और हैं। सीधे-सीधे कहें तो कहां राजा भोज कहां गंगू तेली।
उयि अउर आयिं हम अउर आन!
सोचति समुझति इतने दिन बीते
तहूँ न कहूँ खुलीं आँखी?
काकनि यह बात गाँठि बाँधउ-
उयि अउर आयिं हम अउर आन!
उयि लाट कमहटर के बच्चा,
की संखपतिन के पर-पोता,
उयि धरमधुरंधर के नाती,
दुनिया का बेदु लबेदु पढ़े,
उयि दया करैं तब दानु देयिं,
उयि भीख निकारैं हुकुम करैं,
सब चोर-चोर मौस्यइिति भाई,
तोंदन मा गड़वा हाथी अस-
उयि अउर आयिं हम अउर आन!
उयि बड़े-बड़े महलन ते हँसि-हँसि
लाखन के व्यउहार करैं;
घंटिन ते चपरासी ग्वहरावैं
फाटक पर घंटा बाँधे हैं।
गुरयि उठैं आँखी काढ़े
पदढिट्ठी कै भन्नायि जायँ।
उयि महराजा, महंत दुनिया के
अक्किल वाले ग्यानवान।
अक्किल ते अक्किल काटि देंयि-
उयि अउर आयिं हम अउर आन!
काकनि, तुमार लरिका बिटिया,
छूढ़ा पानी पी हरू जोतैं,
उनके तन ढकर - ढकर चितवैं
बसि कटे पेट पर मुँहुँ बाँधे।
खाली हाथन भुकुरयि लागैं।
उयि राजि रहे उयि गाजि रहे-
उयि अउर आयिं हम अउर आन!
हम लूकन भउकन पाला पथरन
बीनि - बीनि दाना जोरी,
की बड़े-बड़े पुतरी-घर भीतर
मूड़ हँथेरी धरे फिरी ?
चूरै हालीं नस - नस डोली
यी राति दउस की धउँपनि मा,
तब यहै भगति और भलमंसी
हम हरहा गोरू तरे पिसे।
पंचाइति मा तुम पूँछि लेउ-
उयि अउर आयिं हम अउर आन!
और विस्तार पर जाना हो तो मेरा ब्लाग पढ़ें-

1 टिप्पणी:

  1. सर क्या गज़ब पोस्ट लिखे है झन्नाटेदार,,,,,,ई बीच में कवितवन क तड़का तो और तुफ़ानी कर दिया.

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