मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

जन्मदिन के बहाने पिता का स्मरण

एक मामूली आदमी का जन्मदिन !
आज मेरे पिता का जन्मदिन है। जिन्दा होते तो 87 पूरे कर लेते। वे कोई ईसा मसीह नहीं थे, महामना मदनमोहन मालवीय नहीं थे, अटलबिहारी वाजपेयी और धर्मवीर भारती भी नहीं थे। वे कामरेड रामासरे, सुदर्शन चक्र और राहुल सांकृत्यायन के पथानुगामी थे। उनकी कविताओं का रूसी में अनुवाद हुआ। अपनी कविता के सन्दर्भ में उन्होंने कहा था-
यहि मा ना मिली लैला मजनूं ना शीरीं और फरहाद मिली,
जो युग से आए हैं पिसते उनहिन की थोड़ी याद मिली।
मिलती ना रात की बात यहां ना सूरज चांद सितारे हैं,
ईं बातैं हैं उन पंचन की जो धरती मां को प्यारे हैं।
मिली न सुरा साकी हमको न पायल की झनकार सुनी,
हम तो हल के पीछे चलते उस हलधर की ललकार सुनी।
है चमक ना बेंदी की यहि मा ना दम दम दमक नगीना की,
है ठनक हथौड़े की ठन ठन औ बदबू बदन पसीना की।
हिन चूरिन केर खनक पहिऔ जब कटनी काट रहीं तिरियां,
औ बिछुअन केर झनक पहिओ जब लौट रहीं संझा बिरियां।
दुधमुंहे पिलौंधे बच्चन का र्ईं मेडऩ बीच सुअवती हैं,
फिर कटनी अउर निरउनी मा ईं मंद सुरन कुछ गवती हैं।
ईं बनदेबिन के बालक हैं वनदेव इन्हैं मल्हराय रहे,
खुल जाय न इनकै नींद कहूं पंछीगन लोरी गाय रहे।
ढल रहे बीजना पवनदेव वनदेव इन्हें मल्हराय रहे,
खुल जाय न इनकै नींद कहूं पंछीगन लोरी गाय रहे।
ईं परे घाम मा सूख रहै औ मुंह मा अउंठा हैं डारे,
इनका तुम छोटा ना जानेव ईं असल पउनियां हैं कारे।
येई धरती का साधे हैं औ टेके आसमान सारा,
इनहिन की लोहू का लागा ईं पापी महलन मा गारा।
पर फिर इनने करवट बदली रहि रहि के ईं जमुहाय रहे,
ओ तख्त नशीनों सावधान हम सोवत शेर जगाय रहे।
हम जगा रहे उन शेरन को जो बल अपने को हैं भूले,
उनका उईं का जाने पहिहैं जो मिथ्यागौरव मा हैं फूले।
मनई मनई का भेद जहां वो भेद भेद हम पार जाब,

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