मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

Kailash-Mansarovar

हेमंत वाकई आप ही हो द्वितीयोनास्ति!
हमारे मित्र और अनुजवत हेमंत शर्मा गजब के साहसी और धुन के पक्के हैं। वे उन कुछ पत्रकारों में से हैं जिनका लिखा पढऩे के लिए लोग इंतजार करते थे। मैं जब जनसत्ता में राज्यों की डेस्क का प्रभारी था तो मेरे सारे साथी सुनील शाह, संजय सिंह, संजय सिन्हा, अजय शर्मा, अरिहन जैन, अमरेंद्र राय से लेकर प्रदीप पंडित तक उनके द्वारा लखनऊ से भेजी गई फैक्स कॉपी को लपक लेने की होड़ मचती थी। क्योंकि सब को पता होता था कि हेमंत की कॉपी में कुछ नहीं करना है। यहां तक कि शीर्षक भी वही लगाकर भेज दिया करते। वही हेमंत शर्मा अभी कुछ दिनों पहले एकाएक कैलाश-मानसरोवर की यात्रा पर निकल गए और पता तब चला जब 28 नवंबर को उनका मेसेज आया कि एक दिसंबर को शाम साढ़े चार बजे कैलाश-मानसरोवर यात्रा पर लिखी उनकी किताब द्वितीयोनास्ति का विमोचन है। नई दिल्ली में जंतर मंतर के पास स्थित एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में इस किताब का विमोचन रामकथा वाचक मोरारी बापू करेंगे और कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर नामवर सिंह करेंगे। मुझे समझ ही नहीं आया कि हेमंत जी कहना क्या चाहते हैं। कुछ व्यस्तता की वजह से मैं कार्यक्रम में जा नहीं सका। दो दिसंबर के अखबारों में नामवर जी और मोरारी बापू द्वारा परस्पर मंच साझा करते और उनके भाषणों को पढ़कर लगा कि हेमंत जी वाकई लाजवाब हैं वे सही में द्वितीयोनास्ति हैं। आज मैं ग्रेटर नोएडा से लौटते समय इंडिया टीवी के दफ्तर गया और वहां हेमंत जी से मिला। उन्हें बधाई दी। हेमंत जी ने "अग्रजश्रेष्ठ शंभूनाथ शुक्ल जी को सप्रेम" लिखकर पुस्तक भेंट की। लाजवाब फोटो और अद्भुत व साहसिक शैली में लिखे गए 124 पेज के इस यात्रा संस्मरण को मैं गाड़ी में बैठे-बैठे पढ़ गया। वहां से घर तक आने में करीब एक घंटा लगा और तब तक पुस्तक पूरी पढ़ चुका था। हेमंत शर्मा के लेखन की खासियत है कि अगर आप उनका लिखा पढऩा शुरू कर दें तो बिना समाप्त किए आप बीच में रुक नहीं सकते।
आज फेसबुक पर वरिष्ठ संपादक दयासागर ने इस पर काफी कुछ लिखा है इसलिए मैं एक दिसंबर को हुए कार्यक्रम और हेमंत शर्मा के बारे में न लिखकर बस इतना ही कहूंगा कि अगर आप कैलाश-मानसरोवर नहीं गए हैं तो इस पुस्तक को पूरी पढ़ डालिए आपको बिना गए ही वहां तक की यात्रा का आनंद मिल जाएगा। हेमंत शर्मा ने लिखा ही है कि मेरे साथ मेरे पाठक भी इस पुस्तक में मेरे सहयात्री हैं। इस पुस्तक की प्रस्तावना प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान प्रोफेसर कृष्ण नाथ ने लिखी है। तिब्बत को लेकर समाजवादी विचारक डॉक्टर राममनोहर लोहिया और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पारस्परिक मतभेदों को भी पढ़ें। साथ ही यात्रा के अंत में हेमंत बताते हैं कि "पहाड़ों का सम्मान करें और पहाड़ पर विजय प्राप्त करने की कोशिश नहीं करें। अपनी शारीरिक क्षमता का प्रदर्शन न करें और लयबद्ध होकर चलें। कोशिश करें कि हमेशा एक सहयोगी साथ में हो।" इसके अलावा और भी उनके सुझाव हैं। जिन्हें भी हिमालय को करीब से जानना हो अथवा गंगा का उद्गम तलाशना हो या शिव के निवास की खोज करनी हो तो जब भी वे निकलें इन सुझावों पर अमल जरूर करें। हमें सदैव हमसे पहले वहां पर पहुंच चुके लोगों के अनुभवों का लाभ लेना चाहिए। प्रभात प्रकाशन से छपी हेमंत शर्मा की यह पुस्तक "द्वितीयोनास्ति" वास्तव में अपने आप में एकमात्र है।

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