मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

जब नार्थी लड़के को दिल्ली में पीट-पीटकर मार डाला गया तो मुझे अपनी मेघालय यात्रा याद आ गई। साल २००० में मैं कोलकाता से गुवाहाटी गया था। कुल एक घंटे की फ्लाइट है। पर हवाई अड्डे से गुवाहाटी शहर काफी दूर था। रात गुवाहाटी रुका। वहां कुछ देखने को लायक था नहीं इसलिए अगले रोज शिलांग और चेरापूंजी जाने का मन बनाया। गुवाहाटी से एक घंटे से भी कम समय में हम मेघालय की सीमा में प्रवेश कर गए। जैसे ही मेघालय की सीमा में घुसे तो लगा कि मानों हम भारत छोड़कर यूरोप में आ गए हैं। साफ-सुथरी सड़कें और सड़क पर न गाय न भैंस न सुअर। इसी तरह न मंदिर न मसजिद। लगा कि नर्क हम काफी पीछे छोड़ आए हैं और वाकई देवताओं के लोक में आ गए हैं। मेघालय की सीमा में प्रवेश करते ही शराब की दूकान और शराब के विज्ञापनों ने आकर्षित किया पता चला कि यहां एक्साइज टैक्स नहीं है इसलिए शराब शेष भारत से काफी सस्ती है। अपना यूपी याद आया जहां पर लोग बताया करते थे कि हर बोतल व बोतली पर सीएम टैक्स व डीएम टैक्स भी देना पड़ता है। कुछ मोंटी चड्ढा टैक्स भी लगता था। माफ कीजिएगा मैने कभी शराब खरीदी ही नहीं है इसलिए मुझे इस पर पडऩे वाले टैक्सों का अंदाजा नहीं है। दूसरे हर कदम पर ढाबे और पान की दूकानें जिन्हें टखनों से नीचे की स्कर्ट पहने महिलाएं ही चलाती हैं। चाय पिएं या बियर बड़ी ही विनम्रता और सौजन्यता के साथ परोसती हैं। खाने के लिए चावल, अंडा करी और दाल। पान में कच्ची सुपारी जो मैदान का आदमी खा ले तो पलट जाएगा। मेरे साथ थे हमारे गुवाहाटी के संवाददाता श्री प्रभाकरमणि तिवारी और इंडियन एक्सप्रेस के गुवाहाटी स्थित रीजनल मैनेजर बोरदोलोई। जब हम शिलांग पहुंचे तो बारिश हो रही थी। शहर बहुत ही खूबसूरत है। शिमला, कश्मीर, नैनीताल अथवा मसूरी या दार्जिलिंंग से कहीं ज्यादा। वहां के सारे व्यापार पर मारवाडिय़ों का और ब्यूरोक्रेसी पर बंगाली भद्रलोक का कब्जा है। शिलांग को ही भारत में हिल सिटी का दरजा प्राप्त है।
मुझे वहां पर असम ट्रिब्यून के शिलांग स्थित विशेष संवाददाता ने बता रखा था कि रास्ते में कोई भी पूछे तो अपना पता दिल्ली का बताना कोलकाता का नहीं क्योंकि मेघालय के खासी लोग बंगालियों को पसंद नहीं करते और कभी-कभार हमला भी कर देते हैं। शिलांग के बाद हम चेरापूंजी गए। पांचवें दरजे से पढ़ते चले आए थे कि चेरापूंजी में बारिश सबसे ज्यादा होती है। हालंाकि अब ऐसा नहीं रहा। वहां पर हम उस स्थान पर गए जो भारत और बांग्लादेश की सीमा है। एक बड़ी सी खाई दोनों देशों को बांटती है। वहंा पर एक खासी महिला चाय की दूकान खोलकर बैठी थी। सो हमने वहां चावल खाया पर जैसे ही उसने पान दिया कि बोरदोलोई ने पान हाथ से खींच लिया। बोरदोलोई ने वह पान मेरे हाथ से खींचकर खुद खा लिया। मैं भौंचक्का। बोरदोलोई ने कहा कि सर यह पान खा कर आप यहीं गिर पड़ेंगे क्योंकि इसमें कच्ची सुपारी पड़ी है। उस चेरापूंजी कस्बे में पता चला कि रामकृष्ण मिशन का आश्रम है। पूरे मेघालय और शेष उत्तरपूर्वी भारत में रामकृष्ण आश्रम ही हिंदू धर्म की अलख जगाए हैं। वहां पर ये हिंदुत्व के नागपुरी प्रचारक नहीं दिखाई पड़ते।
मुझे लगता है कि अब अगर वहां जाना हो तो शायद यह बताना बड़ा खराब समझा जाएगा कि हम दिल्ली से आए हैं।
चेरापूंजी में सीमा पर मेरे साथ बोरदोलोई।

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