बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

कामरेड सुरजीत की याद में

तीसरे मोर्चे में सब बावन गज के
शंभूनाथ शुक्ल
जब-जब तीसरे मोर्चे की बात उठती है कामरेड सुरजीत बहुत याद आते हैं। वे अकेले कम्युनिस्ट नेता थे जिनका हर दल में सम्मान था और हर राजनेता उन्हें इज्जत देता था। यूं माना जाता है कि युवा राजनेता बुजुर्गों की तुलना में ज्यादा ऊर्जावान और ईमानदार तथा गतिशील होते हैं। पर वामदलों, खासकर माकपा में उलटा हो रहा है। उनके बुजुर्ग राजनेताओं के हाथ से कमान निकल कर जब से प्रकाश करात और सीताराम येचुरी जैसे तथाकथित युवा नेताओं के पास आई है लगता है बुद्धि घास चरने चली गई है। इनके सारे फैसले पार्टी को ही नहीं पूरे वाम गठबंधन को रसातल में पहुंचाने वाले रहे। अब प्रकाश करात जिन ११ दलों के बूते तीसरा मोर्चा बनाने का जोर दे रहे हैं उसमें बसपा नहीं है, आप नहीं है, द्रमुक नहीं है तथा अन्य तमाम क्षेत्रीय दल इससे किनारा किए हैं। इसमें भ्रष्ट नेताओं की अगुआई वाले दलों को न्यौता गया है साथ ही सांप्रदायिक दलों को भी। इसमें वे दल भी हैं जो बारी-बारी से भाजपा और कांग्रेस दोनों से सुविधानुसार गठबंधन करते ही रहे हैं। पर तेलगू देशम पार्टी सरीखे धार वाले दल नहीं हैं। इसमें सपा को तो बुलाया गया है जो उस समय नौटंकी का नाच देखने में बिजी थी जब मुजफ्फर नगर के राहत शिविरों में रोज बच्चे और बूढ़े इलाज के अभाव में मर रहे थे। क्या ऐसा मोर्चा जिसके सभी नेता बावन गज के हों साथ बैठकर कोई सर्वमान्य हल निकाल पाएंगे? भाजपा की सांप्रदायिक नीति से ही लडऩा है तो कांग्रेस का हाथ मजबूत करो। कम से कम राहुल गांधी में पूर्व के नेताओं की तुलना में ईमानदारी और कुछ कर सकने की इच्छाशक्ति तो दीखती है। और अगर कांग्रेस के भ्रष्टाचार से निपटना है तो फिर इस मोर्चे में सपा, अन्ना द्रमुक और बीजद को बाहर करो। लेकिन यह क्या बात हुई कि चुनाव के बाद समर्थन ले लेंगे लेकिन चुनाव पूर्व जनता को बेवकूफ बनाते रहेंगे। काश आज कामरेड हरिकिशन सिंह सुरजीत होते तो शायद यह जड़ता नहीं होती जो आज दीख रही है।

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