हिंदू धर्म और और हिंदू समाज की सबसे बड़ी विशेषता है कि जब-जब कट्टरता बढ़ती है लगभग उसी तेजी से यहां सुधार आंदोलन भी शुरू होते हैं। ग्यारहवीं शताब्दी में जब देश में न तो इस्लाम को लेकर तुर्क आए थे न ईसाइयत का प्रचार हुआ था हिंदू समाज के भीतर से ही एक स्वत: स्फूर्त वीर शैव आंदोलन पनपा था। सिर्फ एक ईश्वर शिव को ही अपना आराध्य मानने वाले इस आंदोलन के जनक कर्नाटक के बसव थे और बाद में उनका भतीजा चिन्नबसव इस मत का प्रचारक हुआ। इनके यहां चार प्रतीक थे रेवान, मरूल, एकोराम और पण्डित। और 'नम: शिवाय' इनका मूलमंत्र था। ये सभी लोग अपने गले में शिवलिंग धारण करते थे। इनके कुछ सिद्घान्त थे-
1. बलि देना व्यर्थ है।
2. व्रत मत रखो
3. भोज मत दो
4. तीर्थयात्रा मत करो और कोई नदी पवित्र नहीं है।
5. ब्राह्मण और चमार बराबर हैं।
6. सभी मनुष्य पवित्र हैं।
7. विवाह स्त्री की सहमति पर ही होना चाहिए। उसकी अनिच्छा से विवाह हरगिज न हो।
8. बाल विवाह नहीं होना चाहिए।
9. तलाक हो सकता है।
10. विधवाओं की इज्जत होनी चाहिए तथा पुनर्विवाह हो सकता है।
11. मुर्दे को जलाना नहीं चाहिए, गाडऩा चाहिए।
12. मुर्दे को स्नान कराना आवश्यक है।
13. श्राद्घ नहीं करना चाहिए। पुनर्जन्म नहीं होता।
14. सब लिंगधारी एक हैं और लिंगार्चन आवश्यक और उचित है।
15. विवाह सगोत्री होने चाहिए।
1. बलि देना व्यर्थ है।
2. व्रत मत रखो
3. भोज मत दो
4. तीर्थयात्रा मत करो और कोई नदी पवित्र नहीं है।
5. ब्राह्मण और चमार बराबर हैं।
6. सभी मनुष्य पवित्र हैं।
7. विवाह स्त्री की सहमति पर ही होना चाहिए। उसकी अनिच्छा से विवाह हरगिज न हो।
8. बाल विवाह नहीं होना चाहिए।
9. तलाक हो सकता है।
10. विधवाओं की इज्जत होनी चाहिए तथा पुनर्विवाह हो सकता है।
11. मुर्दे को जलाना नहीं चाहिए, गाडऩा चाहिए।
12. मुर्दे को स्नान कराना आवश्यक है।
13. श्राद्घ नहीं करना चाहिए। पुनर्जन्म नहीं होता।
14. सब लिंगधारी एक हैं और लिंगार्चन आवश्यक और उचित है।
15. विवाह सगोत्री होने चाहिए।
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